Friday 31 August 2012

ज़िन्दगी मुहब्बत के लिए कम है लोग नफरत में बिता देते हैं


ज़िन्दगी मुहब्बत के लिए कम है लोग नफरत में बिता देते हैं
शय ए दोस्ती को आखिर कैसे यूँ आसानी से भुला देते हैं


बहुत मुश्किल से बनती है रिश्तों में बेबाकियाँ यारों
दोस्ती को भी आजकल कितनी बेबाकी से
सज़ा देते हैं

मत समझो टूट कर कतरा वो आखों से कहीं खो गया
हवाओं के आँचल में उसका शोर थमा देते हैं

आंधियां न तकलीफ दो खुद को तुफानो को बुलाकर
हम तो खुद भी चरागों को जलाकर बुझा देते हैं

आसमान तेरे दामन में ये सितारे जो चमकते रहते
सुबह होते ही पैगाम अपना ओस को बना देते हैं

3 comments:


  1. बहुत मुश्किल से बनती है रिश्तों में बेबाकियाँ यारों
    दोस्ती को भी आजकल कितनी बेबाकी से सज़ा देते हैं ... अब तो जिसे देखो सज़ा देने में मशगुल है

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